हमने भी उम्रभर, ऐसा गुनाह किया..
बेवफ़ा तुझसे कैसे भी, निबाह किया..।
तेरे चेहरे की रंगत, क्यूँ है उड़ी हुई सी..
ये किस मर्ज़ को है, तुमने पनाह किया..।
अब मुहब्बत में ताजमहल बनाऊं भी कैसे..
हर दफ़ा तुमने दिल को मेरे, तबाह किया..।
चांदनी रात रोते रोते गुज़री है, यहां से अभी..
किसने उसके चेहरे को, इतना सियाह किया..।
मुझे वो कतरा के, निकलने लगे है इन दिनों..
कुछ दिल ने, कुछ ज़माने ने है गुमराह किया..।
पवन कुमार "क्षितिज"