कापीराइट गजल
वो खुश हैं चंद जिन्दगियां उजाङ कर
यह भी खुश हैं चंद सिन्दूर उजाङ कर
क्या फर्क है बताओ, उनमें और हम में
क्या मिलेगा हमें, खुशियां उजाङ कर
वो बहा रहे हैं खून अब पानी की तरह
वो खुश हैं अब इंसानियत को मार कर
कौन, दानव है और कौन, देव यहां पर
करेगा कौन फैसला दुनियां उजाङ कर
अल्हाओ अकबर और ये जयहिंद के नारे
करते हैं जुदा तन से सिर को उतार कर
यह सरहदें तो हैं सदियों से दुश्मन अमन की
कुछ मिला है कहां, दुनियां उजाङ कर
जरा, पूछ कर तो देखो, तुम अपने दिल से
क्या जी पाओगे ये, दुनियां उजाङ कर
मिल के रहना सीखो, अय दुनियां वालो
मिलेंगी खुशियां हमें दुनियां संवार कर
यह, चमन तो खिलता है, फूलों से यादव
क्या मिलेगा तुम्हें यह चमन उजाङ कर
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है