(कविता ) (हे प्रिये भूल जाअाे)
हे प्रिये मुझे अब भूल जाअाे तुम
राेज गुलाब का फूल न दिखाअाे तुम (
ऐसी ये खराब खाेपडी है
रहने काे बगैर छत की झाेपडी है
उसी में मैं जैसे- तैसे रहता हूं
ऐसी दु:ख: किसीकाे न हाे राेज यही कहता हूं
मिले थे कभी ये बात काे दिमाग से भगाअाे तुम
हे प्रिये मुझे अब भूल जाअाे तुम
जब अासमां से गरज कर बारिस अाता है
शिर पावं अाैर बदन भीग जाता है
उसके वाद मुझे ठन्ड भी लगता है
थर थर थर सारा शरीर कांपता है
मेरे पास क्याें अाती हाे न अाअाे तुम
हे प्रिये मुझे अब भूल जाअाे तुम
कई कई दिन भूखा न पीता न खाता हूं
कभी वस अड्डे कभी रेलवे स्टेसन जाता हूं
शाम काे वहीं ठन्ड फर्स पर साेता हूं
साेना क्या था रात भर मैं राेता हूं
मेरे से प्यार न जताअाे तुम
हे प्रिये मुझे अब भूल जाअाे तुम
घर में न काेई शब्जी है न भिन्डी है
न धनियां मिर्च न टिन्डी है
क्या खाअाेगी न राेटी न दाल है
मेरी जां बहुत बुरा हाल है
मुझसे नहीं किसी अाैर से दिल लगाअाे तुम
हे प्रिये मुझे अब भूल जाअाे तुम
अगर भूल से मेरी पत्नी बनाेगी
गर- गहने क्या पहनाेगी
मेरे पास न साेना चांदी पीतल है
मन के अन्दर नताे थाेडा शीतल है
अपना रास्ता खुद अभी से बनाअाे तुम
हे प्रिये मुझे अब भूल जाअाे तुम
अाेंठ में लिपिस्टिक पावं में सेन्डल कैसे लगाअाेगी
दु:ख: के सिवा मेरे से कुछ भी न तुम पाअाेगी
कपडे भी नहीं न साडी ब्लाेज मेक्सी है
कैसे घूमाेगी फिराेगी न गाडी न टेक्सी है
मैं बहुत दु: खी: हूं जरा तरस खाअाे तुम
हे प्रिये मुझे अब भूल जाअाे तुम
हे प्रिये मुझे अब भूल जाअाे तुम.......