पलकों पर सजके लगते हैं ये कितने मोती लासानी
पलकों से बहके अश्क़ मगर हैं रह जाते खारा पानी
रहती है खूब बहारों की हरदम गुलशन में धूम बड़ी
जाते ही मगर बहारों के छिन जाता सब दाना पानी
किसको आया है करिश्मा बचपन वापस ले आये
चारागर बस जिद में अक्सर कर जाता है नादानी
अजनबी जिस्म से हमारी रूह भी और ये मन भी है
है थक कर रुकने की गुजारिश और ये आनाकानी
दास दिल खुदको दिखाना चाहता है बस सिकंदर
हर कदम पर गिरता है जब हो जाता है पानी पानी