कहने को हूँ किसान पर नहीं हूँ नादान….
मैंने जिसको है उगाया सब लोगो ने खाया
पर उसका मोल देने में हर कोई इतराया
हर किसी ने लुटा हर किसी ने दबाया
जानकर भी सब कुछ बना बैठा हूँ अनजान
कहने को हूँ किसान पर नहीं हूँ नादान
केवल मेरी छतो में रह गए है छेद
सहायता की बजाये हर किसी को ह मुझ पर खेद
किसानो का ये कोई जीना है,भगवान?
कहने को हूँ किसान पर नहीं हूँ नादान
बेटी को चाहता हूँ एक अच्छे स्कूल में पढ़ाना
पर फिर देखता हूँ अपनी आय का पैमाना
जय किसान के बदले होता हैं घोर अपमान
कहने को हूँ किसान पर नहीं हूँ नादान
✍️-वि.पाल


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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