कापीराइट गजल
मुझको मालूम नहीं गजल क्या होती है
आजकल साथ मेरे एक गजल होती है
यह भी मालूम नहीं कैसे पढ़ते हैं गजल
जब न हो पास मेरे तू ये गजल रोती है
कहते हैं यहां कुछ लोग गजल को दोहे
वो नादां हैं समझ उन में कहां होती है
ऐसे मायने गजल के सुन कर शर्मिन्दा हूं
ये दिल घायल है मेरा ये आंख रोती है
वो जानते हैं गजल दिल लगाया जिसने
जब तन्हाई में उनकी आंख नम होती है
जब आंखों से न टपका तो लहू क्या है
आंख से आंख मिले तो गजल होती है
हुनर गजल का किसे नहीं आता यादव
जब बात हो इशारों में तो गजल होती है
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है