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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

अंतरात्मा का आईना - डॉ एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"

देखिए तो जरा,
वक्त की नजाकत,
है कैसी?
दीमक चट कर जाती,
पूरी लकड़ी।
फिर भी वह नजर आती
बनी संवरी।
मगर अंदर से रहती, खोखली।।
ठीक इसी तरह,
अंतरात्मा है खाली, विख्यात।।
मगर बोलने का अंदाज़ हो जैसा,
शहर की मिठास का स्वाद होता वैसा।

----डॉ एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (6)

+

डॉ कंचन जैन "स्वर्णा" said

बहुत ही सुंदर रचना।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

अध्भुत कमाल का लिखा है डॉ साहब [SIR] बहुत सुन्दर समझाया अंतरात्मा के आईने के रूप में लकड़ी और दीमक का उदहारण देकर ##KamalKaBole

Muskan Kaushik said

बहुत अच्छा लिखा

डॉ कृतिका सिंह said

बहुत सुन्दर लिखा डॉ साहब

रीना कुमारी प्रजापत said

दीमक, लकड़ी,खोखली का उदाहरण देकर आपने अंतरात्मा का हाल भी बयां कर दिया बहुत ही खूबसूरत लिखा आपने डॉक्टर साहब Very very Intresting

Kapil Kumar said

Isiliye suna hai kahate Hain Jahan n pahunche Ravi vahan pahunche kavi

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