देखिए तो जरा,
वक्त की नजाकत,
है कैसी?
दीमक चट कर जाती,
पूरी लकड़ी।
फिर भी वह नजर आती
बनी संवरी।
मगर अंदर से रहती, खोखली।।
ठीक इसी तरह,
अंतरात्मा है खाली, विख्यात।।
मगर बोलने का अंदाज़ हो जैसा,
शहर की मिठास का स्वाद होता वैसा।
----डॉ एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"