दुखो की धार में बहते हुए ना घबराया।
गरीबी में तड़प कर मरना शास्वत पाया।।
इस तरह के हालात में जीना कौन चाहे।
तसल्ली से जब सोचा मन आहत पाया।।
बेवजह आए गम जाते ही नही छोड़कर।
मौज में गैरों की तरह कहते दावत पाया।।
मेरा अनुभव अनूठा करना न प्रयोग तुम।
मरने के बाद में किसी ने क्या मात पाया।।
इस तरह का हमसफ़र गरीब के नसीब में।
जीने का जरिया न खोजा 'उपदेश' पाया।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद