कठपुतली का खेल
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कठपुतली आयें खेल दिखाये
बच्चों बूढ़ों के मन भाये
पर डोर से रहीं बंधाए
डोर तेरी कौन नचायें
वहीं तेरा रचनाकार कहाये
कठपुतली आयें खेल दिखाये
बच्चों बूढ़ों के मन को भाये
रचनाकार तुझे रचायें,तुझे सजाये
नव कथाओं में पिराये
अपनी इच्छा मन में दबायें कठपुतली अभिनय दिखलायें रचनाकार नाट्य करायें
कठपुतली केवल नाचती जायें
कभी हंसाये कभी रुलायें
और कभी वो मर जायें
कठपुतली आयें खेल दिखाये
बच्चों बूढ़ों के मन को भाये
रचनाकार फिर उसे जिलायें
नवरूप नवरंग दिलाये
फिर इशारों से नचवाये
ईश्वर भी एक नाट्य मंच सजाये
आत्मा को नव चोले पहनाएं
हमें कठपुतली की तरह नचायें
कठपुतली आयें खेल दिखाये
बच्चों बूढ़ों के मन को भाये
✍️#अर्पिता पांडेय