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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

चलना शुरू करो तो

चलना शुरू करो, तो
ये मान ही लेना
पांवों का, पत्थरों से
कभी सुलह नहीं होती।


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (8)

+

सुभाष कुमार यादव said

वाह!👌👌

Lekhram Yadav said

ये मान लिया बहुत खूबसूरत उपदेश, सुप्रभात सहित सादर नमस्कार

श्रेयसी said

बहुत सही सोच 🙏🙏

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

आदरणीय यादव जी, श्रेयसी मेम सराहना के लिए धन्यवाद! नमस्कार।

सुप्रिया साहू said

बिल्कुल सत्य है, बहुत सुंदर रचना सर 👌👌, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

धन्यवाद सुप्रिया जी!

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह! क्या गहरी बात कह दी आपने इतनी सादगी से।

ये पंक्तियाँ जीवन की सच्चाई का एक तीखा लेकिन बेहद सुंदर प्रतिबिंब हैं।
"चलना शुरू करो, तो ये मान ही लेना" — यही तो जीवन का मंत्र है।
रास्तों में कांटे होंगे, पत्थर होंगे, और संघर्ष भी होंगे, लेकिन रुकना नहीं है।

कम शब्दों में गहरा दर्शन — यही तो असली साहित्य है।
सच में, बेहद प्रभावशाली! 👏✨
सादर प्रणाम आदरणीय सोनवानी सर जी 🙏🙏

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

आदरणीय अशोक जी सादर नमस्कार। आपकी समीक्षा से मन एक नया ऊर्जा का संचार होने लगता है। रचना को पढ़कर गहन चिंतन और अपनापन से भरपूर आपकी प्रतिक्रिया से हृदय गदगद हो जाता है। आपके बिना सचमुच महफ़िल अधूरा अधूरा लगता है। खूबसूरत समीक्षा के लिए हृदय की अंतहीन गहराई से आभार।🌹🌹🙏

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