मैं भावुक था —
हाँ, वही जो बारिश में भीगकर
इंद्रधनुष ढूँढता है,
जो गाली सुनकर भी
“कोई बात नहीं, उसका मूड ख़राब होगा”
सोच लेता है।
पर एक दिन सरकार ने नोटिस भेजा —
“भावुक लोग समाज में असंतुलन पैदा कर रहे हैं।
कृपया अपना ‘Emotional Fool’ लाइसेंस बनवाएँ।”
मैं लाइन में खड़ा हो गया —
आशावादी भावों की फ़ाइल हाथ में लिए।
सामने वाली खिड़की पर अधिकारी बैठा था,
चेहरे पर एक्सेल शीट की मुस्कराहट और
आत्मा में ‘डाटा एनालिटिक्स’ भरा हुआ।
बोला —
“आपका मूड हमेशा सॉफ्ट क्यों रहता है?
कहीं आप toxic relationship में तो नहीं?”
मैंने कहा —
“नहीं, मैं बस इंसान हूँ।”
वो हँसा —
“तो फिर आप Emotional Fool हैं।
आपका लाइसेंस मंज़ूर है!”
दूसरी खिड़की पर बैठे साहब ने पूछा —
“कभी किसी की मदद की है,
बिना स्वार्थ के?”
मैंने सिर हिलाया — “हाँ…
उन्होंने तुरन्त मोहर मार दी —
“Dangerous category — Type B Fool
अब फॉर्म में सवाल थे:
• क्या आपने कभी किसी को बिना वजह माफ़ किया?
• क्या आपको आज भी वफ़ा में भरोसा है?
• क्या आप किसी के आँसू देखकर बेचैन हो जाते हैं?
तीनों सवालों के जवाब में मैंने “हाँ” भरा।
तो सिस्टम बोला —
“संवेदनशीलता की मात्रा सामान्य से अधिक है
आपको तुरंत इलाज की ज़रूरत है।”
लाइसेंस मिल गया,
और एक डिजिटल कार्ड —
जिस पर लिखा था:
“Emotional Fool – Permanent Resident of the Heartland,
Excluded from Brainy Republic.”
अब मैं जब भी किसी से प्रेम करता हूँ,
तो सामने वाला पहले मेरा लाइसेंस माँगता है।
“ओह! तुम emotional fool हो?
तो ठीक है —
तुम रोओ, मैं scroll करूँगा।”
“तुम निभाओ, मैं छोड़ दूँगा।”
“तुम माफ़ करो, मैं फिर ग़लती करूँगा।”
अब मेरे दोस्तों में सिर्फ़ वो हैं
जो Excel में भी ‘Feeling’ का कॉलम खोजते हैं।
और दुश्मनों की सूची में
वो सारे शामिल हैं —
जिन्हें ये लगता है कि
दिल रखना, बेवकूफी है।
कभी कभी सोचता हूँ —
दिल भी Aadhaar कार्ड जैसा हो गया है —
हर जगह माँगा जाता है,
पर कोई पढ़ता नहीं।
जो आज भी प्यार करता है,
जवाब नहीं माँगता, बस निभाता है —
उसे इस समाज ने
“Emotional Fool” का पद्मश्री दे दिया है।
उस मूर्ख की गाथा,
जिसने आज भी दिल रखने की हिम्मत की।