समेटता रहा जिन अपनों को,
.... वो बिखर गये अपने,
समेटता रहा जिन सपनों को,
....वो बिखर गए सपने,
जिंदगी इक सफर,
....दर बदर भटकना है उमर भर,
केसे कहूं तुमसे,
.... सब बिखर गये सपने,
.... सब बिखर गये सपने,
ख्वाहिशें जिंदगी की,
.... जिम्मेदारियों ने लूट ली,
अब क्या बचा है,
.... सब बिखर गए अपने,
.... सब बिखर गये सपने,
कवि राजू वर्मा
सर्वाधिकार अधीन है