जाने कब से बेजुबान ग़ज़ल इशारे करती।
लाइन में सब कुछ लिखती परवाह करती।।
शायद ही कुछ अनसुलझी जिन्दगी बाकी।
तरह-तरह के किस्से कहानी के रंग भरती।।
उथल-पुथल मच रहीं कुछ सुनने के लिए।
अपने हिस्से का उसमें इतवार ढूँढ़ा करती।।
उनको जिन्दगी की स्याही भा गई 'उपदेश'।
ब्लेक-व्हाइट के चक्कर में खूब हँसा करती।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद