दर्पण
शिवानी जैन एडवोकेट
दर्पण, बालक की आँखों से देखो, तो ये है एक खिलौना,
अपनी ही सूरत देखकर हँसना, या करना कोई बौना।
अचरज भरी निगाहों से देखे, अपनी परछाईं को वो,
ये दुनिया कितनी अद्भुत है, महसूस करे हर शो।
उसके लिए तो ये जादू है, खुद को दो-दो बार देखना,
चेहरे पर नई भावों को लाना, और फिर पल में बदल देना।
ये खेल है उसका प्यारा सा, खुद से ही बातें करना,
इस छोटे से दर्पण में ही, है उसकी दुनिया का भरना।
निष्कपट और सरल है उसका देखना, न कोई छल न भरम,
जैसे है वैसा ही स्वीकारना, यही तो है बचपन का धरम।
दर्पण नहीं बस काँच का टुकड़ा, ये तो है पहला साथी,
जिससे वो करता है परिचय, अपनी ही प्यारी छवि की पाती।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




