कट गए सारे वृक्ष लताएं
डाल डाल हरित शाखाएँ।
निलय का मेरे नील स्वप्न
बह गया करुण स्रोत में अब।
चू चू करके चिड़िया रोई
बना दो मेरा भी घर कोई।
लगता हर पल मिटने का आसार
देह जलाती धूप की रजत बरसात।
अनंत विकास के क्रम में जानो
रहा है सहयोग मेरा भी मानो।
हो प्रात स्मित का प्यारा चाहे
अनुपम साँझ जो नयनों को भाए।
चुंगू कैसे अपना दाना पानी
अश्रु कोष की मैं तो रानी।
दर्द हृदय का लिए मैं उड़ती
मौन उजागर लो अब करती।
_ वंदना अग्रवाल 'निराली'