समझ सको तो समझ लेना —
इन मौन पंक्तियों की व्यथा को
मैं तो कोई भेद नहीं देख पाता
मानव इतिहास की
उन दो महान, मगर दुखद घटनाओं में।
एक —
जब यूनानी युग में
महान दार्शनिक सुकरात को
जहर का प्याला पीना पड़ा।
दूसरी —
जब बीसवीं सदी में
महान वैज्ञानिक ओपेनहाइमर से
उसकी सुरक्षा-मंज़ूरी छीन ली गई।
जब
विचारों और आत्मा पर
प्रतिबंध लगाए जाते हैं —
तब देह, जीवित होकर भी
मृत के समान हो जाती है।
-प्रतीक झा 'ओप्पी'
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज