अल्लाह भी था, मल्लाह भी था,
फिर भी तूफ़ान में कश्ती डूब गई…
दुआओं के हर किनारे पर
खामोशी का साया क्यों था?
लंगर डाला था वक़्त पर,
पर ज़मीर की ज़मीन ही खिसक गई थी,
हाथ थे सबके उठे हुए,
मगर उँगलियाँ बस इशारा कर रही थीं।
कोई ना कूदा, कोई ना चिल्लाया —
हर किसी को डर था अपने गीले होने का,
औरत थी — नाव सी, बोझ ढोती रही,
पानी भीतर भी था, बाहर भी।
न इमाम बचा, न रहबर आया,
हर दाढ़ी वाले ने बस चुप्पी ओढ़ी थी,
जिन्हें खुदा का वास्ता दिया था —
वो अपनी नमाज़ों में भी गैरहाज़िर निकले।
आसमान पे हर सितारा था
पर किस्मत में अंधेरा लिखा था,
जब लंगर तक ने पकड़ छोड़ दी —
तब समझ आया:
इंसान डूबता है, पहले भरोसे में।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




