कितनी हो गई शातिर उसके सहारे हम।
कहाँ जाए उसे ढूँढे जिसको पुकारे मन।।
राशि मिलती नही तजवीज से चोट देती।
लगाकर दोष हँसती छलनी करे दामन।।
मिली जैसे मोमबत्ती की ज्योति डोलती।
जले दिन रात अपनों में दीदार-ए-चमन।।
जाने बखूबी अंजाम मोहब्बत में हारना।
वो ऊँची खिलाड़ी निकली सितारे अमन।।
जज्बात जगा के दिल से खेलती 'उपदेश'।
चेतनाहीन हो गई शायद फिर भी नमन।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद