इस ज़िंदगी में कोई तो काम मिल जाए,
ज़िंदगी में कोई मक़ाम मिल जाए।
कभी इधर भागते हैं कभी उधर भागते हैं,
कोशिश रहती है कि ज़िंदगी को एक मंज़िल मिल जाए।
ना ही काम मिला ज़िंदगी में,
ना ही मक़ाम मिला ज़िंदगी में।
की कोशिश पूरी,
पर कुछ भी हाथ ना लगा इस ज़िंदगी में।
जब तक ज़िंदगी है ख़्वाहिश है कुछ पा ले,
कुछ तो नाम कमा ले,
जब ज़िंदगी ही ना रहेगी तो ख्वाहिश
फिर क्या कुछ पाने की होगी।
जब ज़िंदगी ही ना रहेगी तो फिर
मंज़िलें किस काम की ,
फिर वो मक़ाम किस काम का।
✍️ रीना कुमारी प्रजापत