इश्क़ की अंगीठी पर चाहत का पतीला चढ़ाया हैं,
यादों के पानी में प्यार की चायपत्ती को खौलाया हैं,
जज्बातों की अदरक और अरमानों की इलाईची से तरोताज़ा बनाया हैं,
ख्वाबों की मिश्री और मिलन की आस का दूध भी मिलाया हैं,
तब जाकर इस मोहब्बत की चाय को अपने इरादों सा कड़क बनाया हैं,
एक घूँट लेकर देखो आदि हो जाओगी,
फ़िर चाय की तरह रोज़ हमें ही चाहोगी।
लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'