वो मेरे पहलू में जो आए, तो चांद तन्हा हो गया..
बहारों का मौसम भी, कुछ और जवां हो गया..।
मेरी सब आरज़ूएं भी , चटख रंगों से रंग गई..
ज़माना भी न जाने कैसे, कुछ मेहरबां हो गया..।
मुहब्बत की बारिश से, भीगी फिजाएं इस कदर..
समन्दर की ही मानिंद, ये सारा आसमाँ हो गया..।
बहुत कशमकश के बाद, मुहब्बत की तस्दीक हुई..
और दुश्वार सफ़र, ख़ुद–ब–ख़ुद ही आसाँ हो गया..।
गुलों ने दिल के अफ़साने का, जिक्र तो न किया था..
मगर वो तो खुशबूओं से, बे–ख्याली में बयां हो गया..।
पवन कुमार "क्षितिज"