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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

रोक नहीं पा रहा था एक नन्हा खग खुद को आसमान में उड़ जाने से - अशोक कुमार पचौरी


हौसले बुलंद थे
तभी तो वो उड़ सका
नन्ही सी जान थी
पर अभी निकले ही थे
घोंसला वही पर था
जहाँ पे था वो जन्मा
अभी तलक कवच भी था
अंडे का जिससे था निकला
इन सबसे अनजान होकर भी
उड़ता देख माँ, भाई , बहिन को
वो भी उड़ा पर ऐसे नहीं
कई बार फड़फड़ाया
कई बार लड़खड़ाया
शाखों से टकराया
लौटकर वापस घोंसले में आया
फिर न जाने क्या मन में आया
फिर उड़ा, फिर गिरा
चोट खाकर, फिर उठा
पर झड़े, जिद पर अड़े
उड़ना है फिर भी कहते रहे
रोक नहीं पा रहा था
एक नन्हा खग खुद को
आसमान में उड़ जाने से
एक अचानक कुछ उखड़ा
दिल धड़का चाहत उठी
हिम्मत हुयी फिर से उसे
वो उड़ गया आखिर
कर हौसला बुलंद
क्योंकि,
रोक नहीं पा रहा था
एक नन्हा खग खुद को
आसमान में उड़ जाने से
रोक नहीं पा रहा था
खुद को दूसरों से
आगे निकल जाने से।

  • अशोक कुमार पचौरी
    (जिला एवं शहर अलीगढ से)






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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

Anshul saraswat said

बहुत ही खूबसूरत रचना

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपका सहृदय बहुत आभार

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