रोज तुम्हारे दर पर आऐं,
पर तुमसे कुछ भी ना चाहें,
कभी-कभी ये क्यों लगता है।
चार दिनों तक खिली चांदनी,
फिर से काली रात आ गई।
खुशियों के बादल छाए थे,
पर गम की बरसात आ गई।
भाग्य भरोसे चलते जाऐं,
कभी न तुमसे पूछें राहें।
कभी-कभी ये क्यों लगता है।
बोया था मौसम बहार का
बागों में पतझड़ उग आया,
सजी हर इक डाली कांटों से,
जब फूलों का मौसम आया।
कभी न कुछ भी तुम्हें बताएं,
तुमसे सारे दर्द छुपाऐं,
कभी-कभी ये क्यों लगता है।
गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर
@सर्वाधिकार सुरक्षित रचनाकार।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







