धरा काँपी थी, भय था छाया,
अधर्म ने था राज जमाया।
हिरण्यकश्यप दैत्य अहंकारी,
स्वयं को समझे जग का अधिकारी।
प्रभु को माने ना वह सच्चा,
बेटे प्रह्लाद को भी सताया।
प्रेम भक्ति जो बालक लाया,
हर पल “नारायण” ही गाया।
वह बोला – “कहाँ है तेरा विष्णु?”
“क्यों करता है नाम का जप तू?”
प्रह्लाद बोला – “हर कण में वास है,
स्तम्भ-स्तम्भ में उसका प्रकाश है।”
गर्ज उठा वह, खम्भा तोड़ा,
देखा दृश्य, मन भी डोला।
ना नर था वो, ना सिंह पुराना,
प्रकट हुए विष्णु – नृसिंह भगवान।
ना दिन था, ना रात का पहर,
सीमा पर था वह काल प्रहर।
ना धरती थी, ना गगन का स्थान,
उठाया दैत्य को अपने प्रचंड हाँथ।
गोद पर बिठाया, चीरा ह्रदय,
अधर्म मिटा, फैला उजियारा सच्चा।
भक्ति पर ही रहा भरोसा,
सत्य प्रेम ने फिर से जगा भरोसा।
प्रह्लाद को दी प्रभु ने छाया,
सत्य और श्रद्धा ने रंग दिखाया।
नृसिंह अवतार बना संदेश,
हर युग में होगा अधर्म का अंत विशेष।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




