मालूम है,खाली हाथ लौट कर जाना है ।
फिर भी भ्रष्टाचारी, घोटालेबाज।
भर भर के बक्से, बिगाड़कर नक्शे।
चूसते हैं खून गरीबों का, नाम बदलकर।
रिकॉर्ड खाकर, सरकारी अभिलेखों में।
करते हैं मोटी कमाई, जांच जब आई।
अंकी लाल अंक, डंकी लाल डंक।
इंकी रानी इंक की आफत आई।
भ्रष्टाचार के तीन दलाल, हो गए हैं मालामाल।
गिरते-पड़ते नाली में, नोच रहे हैं बाल।
खोजी पुलिस ढूंढ रही है, नीबू सा निचोड़ रही है।
आवाजें तो आ रही है, मेल फीमेल की।
रचे जो षड्यंत्र, वर्षों के खेल की।
बू आ रही है, षड्यंत्र के मेल की।
मार मार कर उधेड दी है, खाल।
अब याद आ रहा है, रिश्वत का माल।
जप्त हो गई सारी संपत्ति,
अब नजर आती है, उसमें विपत्ति।