रूह-ए-इंसान ने रहमत का रस्म-ए-रिश्ता खुद से बाँध लिया,
दिल-ए-नर्म ने नफ़रत के नाख़ून ख़त्म कर नूर को थाम लिया।
हर सखी-सा साया मुस्कुरा उठा—
मेहर की मन्नत, ममता की मंज़िल, मोहब्बत की महफ़िल—
मिल कर मलंग हुई… मधुर मलहार में मगन हुई।
इंसान-ए-ख़ाक ने कहा— “मैं खाक सही, पर ख़ैर का ख़ज़ाना हूँ,”
यहीं ख़ाक में ख़्वाब भी हैं और खिलते हुए कलाम भी।
ज़ुल्मत बोली— “मुझमें भी उजाले की एक उलझन है,”
और शब ने सुब्ह से सलेम लहज़े में सलाम किया।
पानी ने पलकों पर आकर पयाम-ए-शफ़क़त रखा—
बोला, “मैं तुझको प्यास से पहले पहचान लेता हूँ।”
हवा ने कहा, “मेरी उँगलियों में तेरी धड़कनों की दास्तान बसती है।”
दिल ने दुआ की—
“या रब! मेरी मोहब्बत इतनी बढ़ा दे
कि हर ज़ख़्म को ज़िंदगी समझ बैठूँ,
हर जानवर को अपना हमज़ाद कहूँ,
और हर प्राणी में तेरा ही नूर देख लूँ।”
क़ुदरत की हर कली ने कुर्रत-ए-नज़र होकर कहा—
“परोपकार की रहमत जहाँ भी बरसती है,
वहाँ इंसानियत गुल-ए-तरफ़ बनकर खिल उठती है।”


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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