एक अमीर की शादी में
हजारों अमीर नाच रहें है।
और मिडिल क्लास
निम्न क्लास वाले
शरबत मिठाइयां
चाट रहें हैं।
क्या साधु संत
क्या नेता क्या अभिनेता
सब चूरन बांट रहें हैं।
जनता में अपने अपने टशन
इगो में रहने वाले पत्तल पूड़ी चला रहें हैं ।
वास्तविकत यही है बाबू
नेता या अभिनेता नहीं बल्कि
सौदागर व्यापारी देश को हांक रहें हैं ।
और हम मूर्ख जनता शासन प्रशासन की
ओर ताक रहें हैं।
और अपने हीं पैसे से तैयार
मुफ्त की रेबाड़ियों की चाहत लिए
नेता जी की जय जयकार कर रहें हैं।
सपनों में जन्म लिए हम सब आम आदमी
बस सपनों सपनों में जीवन काट रहें हैं।
हाथ में ना आए कुछ भी तो
खुद को हीं डांट रहें हैं।
मुफ़्त की राशन
मुफ़्त का भाषण
हम भी तो बस यही चाह रहें हैं।
अमीरों की बड़ी बड़ी फैक्ट्रियों में
शौक से हमलोग अपना जीवन दान कर रहे है।
ख़ुद को गरीब रख कर अमीरों की
झोली भर रहें हैं।
और इन्हीं अमीरों की मीठी मीठी
गोलियां खा ..
कभी डायबटीज तो कभी हॉट अटैक से मर रहें हैं..
फिरभी जय जयकार कर रहें हैं।
अमीर के हकीक़त तो हम जैसों के
सपने हैं और हम इन्हीं अमीरों के दिखाए
सपनों में जी रहें है..
और सपनों में मर रहें हैं...
बाबू अब आगे क्या क्या बताएं
कि अपना क्या हाल है
कैसे कैसे बदल रही अपनी किस्मत की चाल है....बस यही कहना है कि...
ना आना है ना दाना है
शौहर को पीट रही जनाना है।
अजीब वक्त का तकाज़ा है ।
पल पल उठा रहा गरीबों का जनाजा है
बस अंधेर नगरी चौपट राजा है।
लोगों के हीं किए का
उनको मिल रही सज़ा है।
रो रहें हैं फिरभी कहते हैं
आया बड़ा हीं मज़ा है
आया बड़ा हीं माजा है..