कैसे आंखें तरस जाती है,
तुम्हें देखकर,
तुम्हें तरस नहीं आता,
ये आंखें देख कर ।।
तुमसे भी बेहतर हैं,
पर तुम नहीं हो,
तुम जो कर सकते हो,
वो बेहतर भी नहीं कर पाते,
तुम्हें यह जानकर ताज्जुब है,
हमारे बारे में क्या तालीम दी होगी,
उन्होंने हमें देखकर।।
लोग भूल जाते हैं,
जो हो रहा है आजकल,
हमें चाहे कुछ भी हो जाए,
तुम्हें तो भनक लगी ही जाती है चेहरे देखकर।।
कागज पलट दो,
कुछ नहीं लिखा है इस कलम से,
हम जो लिखेंगे,
वह न जाने हमारे साथ हुआ है,
तुम तो बस स्वीकार या अस्वीकार कर देना।
सबसे बेहतर हो तुम,
तुमसे बेहतर क्या होगा,
तुम तो छोड़ दो,
क्या होगा नसीब में,
तुम हो या ना हो,
मुझे स्वीकार है,
तुम मेरे बने रहोगे।।
- ललित दाधीच।।