दर्द के साएं में आंसु छिपा लेते है
देख न ले कोई नजरों को झुका देते है
दर्द के साएं में आंसु छिपा लेते है ।।
रग रग में कंपन उठा जो कांपते रहते है
सहारा गमों का जो काबिल बना देते है
दर्द के साएं में आंसु छिपा लेते है ।।
धारा आंसु की गिरे तो आग जैसे जल जाते है
कौन अपना भला सवालों में फंसे रहते है
दर्द के साएं में आंसु छिपा लेते है ।।
बेशक ख़यालो को किनारा नहीं मिलता हैं
अश्रु बन वो खारा समुद्र बन जाते है
दर्द के साएं में आंसु छिपा लेते है ।।