‘अहम्’आज वक्त से हार गया
इमारतें शोर मचाती रहीं,
आवाज़ें दीवारों से टकराती रहीं,
पूछती रहीं -
“आज सन्नाटा क्यों छाया है?”
पलट कर कोई जवाब नहीं आया।
घबराकर फिर से पूछा-
आज लड़ते झगड़ते रिश्ते क्यों नहीं सताते?
रूठने मनाने के सिलसिले क्यों नहीं गुदगुदाते?
झूठ फरेब के राज़ अब हमें क्यों नहीं बताते?
तब चुप्पी ने कहा-
“अहम् आज वक्त से हार गया।”
धन जो वर्षों संजोया गया-वह सब यहीं रह गया।
प्यार ,नफ़रत,नाराज़गी ,रिश्ते-नाते सब यहीं दफ़न हो गया।
न तन,न तन की ख़ूबसूरती- कुछ भी साथ नहीं ले जा पाया।
मान सम्मान में उलझा हुआ इंसान,
आज बस एक सफेद चादर में लिपटकर चला गया।
इमारतें खड़ी रह गयीं,
कारवाँ चुपचाप गुज़र गया..
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




