कभी कभी मैं वक्त पर, सब हालात छोड़ देता हूं..
जो बनाए से ना बने, फिर मैं वो बात छोड़ देता हूं..।
मैने ज़िंदगी में कभी भी, सख़्त उसूल बनाए ही नहीं..
तुम कहो तो जीने की भी, एहतियात छोड़ देता हूं..।
दिल से अब कोई मुकम्मल ज़वाब, मिलता ही नहीं..
चलो उसी के हिस्से में सब, सवालात छोड़ देता हूं..।
दुनिया वाले बहुत परेशान नज़र आते हैं, अब मुझे..
चलो उनकी खातिर, उनके ख़यालात छोड़ देता हूं..।
आजकल ये रास्ते, हर रोज़ अपना भेष बदलते हैं..
अब किसी तरह से आसमां में, निशानात छोड़ देता हूं..।
पवन कुमार "क्षितिज"