अविरल,अविचल,आराध्य कहो,
पुलकित,फुल्लित,असाध्य कहो,
मुख मंडल की महिमा जिनकी,
गंग कहो या भुजंग कहो,
त्रिलोचन,त्रिकाल दर्शी ,
और चाहो कालों का काल कहो,
भस्म रमे रहते तन पर ,
उस ईश्वर को महाकाल कहो।।
नन्दी नाँद करें जिनके ,
जो खुद करते, तांडव जब तब
विष प्याल जगत का पीते हैं,
उन्हें नीलकंठ, नीलादि कहो ।।
अविरल,अविचल,आराध्य कहो,
पुलकित,फुल्लित,असाध्य कहो,
मुख मंडल की महिमा जिनकी,
गंग कहो या भुजंग कहो,
त्रिलोचन,त्रिकाल दर्शी ,
और चाहो कालों का काल कहो,
भस्म रमे रहते तन पर ,
उस ईश्वर को महाकाल कहो।।
-अशोक कुमार पचौरी
(जिला एवं शहर अलीगढ से)
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