क्रोध
डॉ0 एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
क्रोध का सागर जब मन में लहराए,
विवेक की नाव भी डगमगाए।
शब्दों के कांटे ऐसे चुभते हैं,
अपनों के दिल को बेधते रहते हैं।
क्रोध की आंधी में सब कुछ उजड़ता,
सहयोग का वृक्ष भी जाता है जड़ता।
अपनों के दिल में टीस गहरी,
भरने में लगते हैं पल कई।
क्रोध का विष जब मन में रचता,
चेहरे का आकर्षण भी घटता।
क्रोध की ज्वाला में जलता है अंतर्मन,
सद्कर्मों का फल भी होता है निर्धन।
क्रोध से बनते हैं पराए अपने,
सौहार्द के रिश्ते भी जाते हैं छिन्न-भिन्न।
क्रोध की छाया में निराशा गहरी,
ज्ञान का प्रकाश भी जाता है ठहरी।
क्रोध की लहर में बह जाते हैं,
मित्र-शत्रु का फर्क भूल जाते हैं।
क्रोध की ज्वाला जब शांत होती है,
तब पश्चाताप की आग जलती रहती है।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




