मेरे घर के बगल में एक फूल वाली रहती थी। वह फूल बेचती थी और मैं रोज़ उसकी दुकान से फूल खरीदती थी। लेकिन एक दिन उसकी दुकान बंद थी।
मैंने दूसरे दिन पूछा, "तुम कल कहाँ थी?"
उसने कहा, "मुझे वापस लौटना पड़ा, माफ़ करना दीदी। कल मेरे गाँव वाले आए थे और उनसे छुप कर मैं फूल बेचती हूँ।"
मैंने पूछा, "क्यों? क्या तुम ड्रग्स बेचती हो?"
उसने कहा, "नहीं, नहीं। फिर क्यों छुप कर बेचना? तुम तो बहुत शुभ कार्य करती हो। तुमसे खरीद कर ही तो हम भगवान पर चढ़ाते हैं। दोस्त एक-दूसरे को फूल दे कर ही तो अपनी दोस्ती में प्रगाढ़ता लाते हैं। किसी को जीत की बधाई देना क्या फूलों के बिना संभव है? बालों में गजरा लगा कर हम अपनी सुंदरता बढ़ाते हैं। वैवाहिक बंधन, बिना फूलों के कहाँ बंध पाते हैं? किसी का स्वागत करना हो तो तुमसे ही खरीदा फूलों का गुलदस्ता काम आता है। और सबसे बड़ी बात, दुनिया छोड़ कर जाने वाले व्यक्ति के शवों पर फूलों की बरसात कर के ही तो हम उनकी विदाई कर पाते हैं। एक तरह से तो तुम इतने सारे पुण्य कार्य करती हो।"
मैंने समझाया, "जिनके लिए तुमने दुकान बंद की, वो तुम्हारे एक दिन का भी हर्जाना देंगे क्या? फिर क्यों गलत संकोच में अपना हानि करना?"
उसने कहा, "आपने मेरी आँखें खोल दीं। कोई और क्या सोचेंगे? सिर्फ़ इसलिए मैं अपनी दुकान बंद नहीं करूँगी। अब आप रोज़ आना। अब कोई आएगा तो उसे गर्व से बोलूँगी, मैं आ कर मिलती हूँ। मैं हूँ फूल वाली, मैं फूल बेचती हूँ।"