उस दिन सिर पे उसके न जाने कौन सा भूत सवार था,
सीने से लगकर हमारे किया पीठ पे वार था,
हम ज़ख्म किसी को दिखाते भी कैसे,
वो गद्दार भी आख़िर अपना ही यार था..!
---कमलकांत घिरी.✍️
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---कमलकांत घिरी.✍️