अहंकार का दर्पण
डॉ0 एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात "
अहंकार का दर्पण, सच ना दिखाता,
खुद की बुराई, कभी ना बताता।
खुद को ही श्रेष्ठ, जब मानने लगो,
अपनों के दिल को, दुख पहुँचाने लगो।
रिश्तों की डोर, टूटने लगती है,
खुशियाँ भी जीवन से, रूठने लगती हैं।
विनम्रता का आँचल, जब छूट जाता है,
अहंकार का विष, जीवन में घुल जाता है।
शक्ति का नशा, जब सिर पर चढ़ता है,
अपनों का साथ, पल भर में मिटता है।
ज्ञान का गुमान, जब आँखों में छाता है,
सच की राह से, कदम डगमगाता है।
दूसरों को छोटा, जब समझने लगते हो,
खुद भी छोटे, बन कर रह जाते हो।
अहंकार का विष, जीवन में भर जाता है,
अपनों का साथ, पल भर में छूट जाता है।
विनम्रता का दीप, जब मन में जलता है,
अहंकार का अंधकार, पल भर में ढलता है।
अपनों का साथ, जीवन में भर जाता है,
खुशियों का सागर, फिर से लहराता है।
अहंकार का त्याग, जीवन में सुख लाता है,
विनम्रता का आँचल, अपनों को मिलाता है।
सदा अपनों का साथ, निभाते चलो,
अहंकार के विष से, खुद को बचाते चलो।