कापीराइट गजल
अपनी परंपराओं को अब आगे बढ़ाइए
अपनों के संग खुशियां फिर से मनाइए
विदेशी परम्परा को न यूं आगे बढ़ाइए
क्यूं दौङें उनके पीछे अब ये तो बताइए
कमी क्या है संस्कृति में यह तो बताइए
अपने दिल में खुल के अब इसको बसाइए
गर हो भारतवासी ये साबित कर के दिखाइए
रोज डे की जगह अब ये शिवरात्री मनाइए
बसन्त का मौसम है अब खुद को जगाइए
अपनों के संग फिर से अब होली
मनाइए
वेलेन्टाईन क्या चीज है ये हम को बताइए
राधा-कृष्ण के दर्शन अब उस को कराइए
अंधी नकल करने वालो कुछ तो शरमाइए
अपनी स्वस्थ परमपरा को ही आगे बढ़ाइए
यादव का ये सन्देश जन-जन तक बढ़ाइए
प्यार के रंगों से अब इस दिल को सजाइए
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है