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कविता की खुँटी

                    

अभिषेक मिश्रा जी की रचना गरीब का दर्द

May 19, 2024 | कविताएं - शायरी - ग़ज़ल | लिखन्तु - ऑफिसियल  |  👁 23,978

था गरीब उस वक्त भी लाचार,
जब देश नहीं था हुआ आजाद,
उस वक्त भी तन पर कपड़ा न था,
आज भी वो वैसे घूमता है,
हैं कैसा ये तकदीर उनका,
जो था उनका उस वक्त भी ऐसा,

अब तो भाग्य भी उनका साथ न देता,
जहां इस शहर में बनी हजारों मंजिल,
वही सड़क किनारे झुग्गी में रहता,
करता हैं सबसे ज्यादा परिश्रम,
सुबह को रिक्शा खींचने जाता,
पता नहीं कब शाम को आता,

नहीं मिलता कभी मेवा और मिश्री,
साग रोटी से ही काम चलाता है,
क्योंकि इतना कम वो कमाता है,
जब कभी वो बीमार पड़ता हैं,
बिन उपचार के ही मर जाता हैं,
बेचारा होता ही हैं इतना लाचार,

न दिखता है बिजली के तार,
न घर में एलईडी जलता है,
पूरे गर्मी में पसीने से जूझता,
सारी रात सड़क किनारे रहता है,
ठंडी में नहीं मिलता स्वेटर सॉल,
बिन कपड़े के ही ठंडी बिताता है।

पानी भी नहीं मिलता इतनी आसानी से,
नहीं दिखता हैं उसके घर पानी की टंकी,
जाना पड़ता है सरकारी टैंकर के पास,
सुबह लगती हैं पानी की लंबी जो कतार,
करना पड़ता है जो उनको घंटों इंतजार,
क्योंकि ये बेचारा इतना हैं विवश लाचार।

- अभिषेक मिश्रा




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