जंगल की पुकार
डॉ एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
जंगल प्रकृति की साँसें हैं, मत काटो इनको यूँ,
पशु-पक्षी का घर है ये, जीवन का है मधु।
इंसान, तेरा भी जीना इससे, जुड़ा है हर पल,
इसे काटकर मत कर गलती, ये विष का है हल।
किसी मासूम का घर उजाड़ना, कैसा तेरा मन?
अपनी बस्ती बसाने को, क्यों करता निर्वहन?
प्रकृति की आँखें देख रही हैं, कर्मों का लेखा-जोखा,
बच के रहना ओ नादान, ये तेरा भ्रम है थोखा।
अपना घर तू बनाता, सजाता, खुशियों का डेरा,
दूसरों के घर में लगाता, क्यों अँधेरा गहरा?
इंसान, अपने कर्मों से डर, ये नादानी छोड़,
आज नहीं तो कल भुगतेगा, ये बंधन है कठोर।
मत भूल ये धरती सबकी, सबका है अधिकार,
जंगल रहेगा तो बहेंगी, जीवन की ये धार।
समझ ले अब भी ये सच तू, मत कर ये नादानी,
वरना प्रकृति का कोप झेलेगा, भरेगा तू पानी।