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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

जंगल की पुकार डॉ एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"

जंगल की पुकार
डॉ एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"

जंगल प्रकृति की साँसें हैं, मत काटो इनको यूँ,
पशु-पक्षी का घर है ये, जीवन का है मधु।
इंसान, तेरा भी जीना इससे, जुड़ा है हर पल,
इसे काटकर मत कर गलती, ये विष का है हल।

किसी मासूम का घर उजाड़ना, कैसा तेरा मन?
अपनी बस्ती बसाने को, क्यों करता निर्वहन?
प्रकृति की आँखें देख रही हैं, कर्मों का लेखा-जोखा,
बच के रहना ओ नादान, ये तेरा भ्रम है थोखा।

अपना घर तू बनाता, सजाता, खुशियों का डेरा,
दूसरों के घर में लगाता, क्यों अँधेरा गहरा?
इंसान, अपने कर्मों से डर, ये नादानी छोड़,
आज नहीं तो कल भुगतेगा, ये बंधन है कठोर।
मत भूल ये धरती सबकी, सबका है अधिकार,
जंगल रहेगा तो बहेंगी, जीवन की ये धार।
समझ ले अब भी ये सच तू, मत कर ये नादानी,
वरना प्रकृति का कोप झेलेगा, भरेगा तू पानी।




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

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शिवचरण दास said

तब तक शायद भरने के लिए पानी कहाँ होगा! बहुत खूब

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

प्रकृति की आंखें देख रही है। बहुत सुंदर संदेश।। रचना बहुत सुंदर जी। शुभरात्रि!!

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