चमकता पर्दा,
रंगीन दुनिया।
मन मोह लेती ये नज़ारा,
टेलीविजन।
एक साथी बनकर,
बैठा है घर के कोने में आरामा।
लेकिन,
इसके पीछे छिपे हैं दोष।
जो धीरे-धीरे हमें घेरे,
नज़रें चिपक जाती हैं।
इस पर,
दुनिया से कट जाते हैं धीरे-धीरे।
बच्चों का खेल,
पढ़ाई सब छूट जाता।
सारी दुनिया इसी में,
मस्त रह जाता।
कल्पना शक्ति,
रचनात्मकता मर जाती,
जीवन का रंग फीका पड़ जाता।