आंधी तूफ़ाँ ने जब मिलकर इतने पेड़ गिराए होंगे
बेघर हुए परिंदों ने तो लाखों अश्क़ बहाये होंगे
अपने अपने दर्द सभी के मगर सभी के दिल टूटे हैं
पेड़ों के वासिदों ने ख़ुद ही जख्म सहलाये होंगे
फिर ढूंढेगे नया बसेरा बस हिम्मत के बलबूते पर
टूटे पँख लिए बेचारे दूर कहाँ तक उड़ पाए होंगे
तिनका तिनका फिर ढूंढेंगे मिले कहां दाना पानी
आंगन में बिखरे दाने भी डर से ना खा पाए होंगे
सारी सुख सुविधा पाकर हरदम रोता है दास बहुत
जीना सिखलाने खुदाने बाक़ी जीव बनाये होंगे II