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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

आसमां पिघल गया

आज दिन बेहतर था, वैसा नहीं जैसा कल गया..
हौले हौले बगैर उनके भी, दिल मेरा संभल गया..।

दुनिया वालों से तो, मेरे त'अल्लुक़ माकूल ही थे..
वक्त बड़ा बहरूपिया था, देखते देखते छल गया..।

उनकी आंखों में देख के, अज़ब खेल मुहब्बत के..
दिल बच्चा ही था, समझाते समझाते मचल गया..।

हमने जब सफ़र पर चलने का, कुछ इंतज़ाम किया..
हमकदम और हम–सायों का, कारवां निकल गया..।

जाने इस जहाँ पर, किसी का अख़्तियार है कि नहीं..
वो देखिए आफताब से पहले, आसमां पिघल गया..।

पवन कुमार "क्षितिज"




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (9)

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रीना कुमारी प्रजापत said

वाह 👏 क्या बात है बहुत खूब

पवन कुमार "क्षितिज" said

Thanks Rina ji 😊

सुभाष कुमार यादव said

बेहद खूबसूरत ग़ज़ल। हर शेर में एक सीख। क्या कहने, वाह!👌👌

पवन कुमार "क्षितिज" said

शुक्रिया करता हूं आपका सुभाष जी..

शिवचरण दास said

बहुत सुन्दर. ..आफताब से पहले आसमा पिघल गया. .वाह वाह

Ankush Gupta said

जाने इस जहाँ पर, किसी का अख़्तियार है कि नहीं.. वो देखिए आफताब से पहले, आसमां पिघल गया..। ...बहुत खूब 👏👏👌👌

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

बहुत बढ़िया वाह,मन को छू लेने वाली रचना। तालियां तालियां तालियां।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

बहुत ही नाजुक और भावपूर्ण शायरी है, जिसमें वक्त की बदलती सच्चाई और दिल की टूटन की खूबसूरती से बात कही गई है। अक्सर हमें एहसास होता है कि वक्त कितना छलने वाला होता है, पर फिर भी हम उम्मीद में चलते रहते हैं - आपकी कलम में बेमिसाल जादू है क्षितिज सर जी... आपका बहुत अभिनंदन।

पवन कुमार "क्षितिज" said

अशोक जी आपकी सराहना मेरी ताकत बनती जा रही है..आभार 🙏🙋

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