आँखो में आँसू छुपाए बैठी है तन्हाई के।
बिखरने न पाए बातें सुनकर रुसवाई के।।
नाम लेने के तरीके कायम हटते ही नही।
चर्चे चलकर बन्द ही नही होते सगाई के।।
किस तरह से मेरी शर्त हो गई चकनाचूर।
समझाते रह गए 'उपदेश' हल सफाई के।।
फूलो से दोस्ती और काँटो से दुश्मनी रही।
ख़ुश्क हो गए फूल बिन माफिक दवाई के।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद