जब से दिल की बात कहने के सलीके आ गए हैं
सब गलतफहमी में हैं कि हम भी शायर हो गए हैं
कल तलक जो खुलके हमसे खुद गले मिलते रहे
आज कहते हैं वे हम उनके दल से बाहर हो गए हैं
कुछ यहां से कुछ वहां से ढूंढ़कर मिसरे मिलाकर
महफिलों में तालियां अब पाने में माहिर हो गए हैं
सिर्फ लिखना ही नहीं काफ़ी ज़माने में आजकल
अदाकारी बिना तो शायर भी मुजाहिर हो गए हैं
दिल के लहू में तैरकर जब लफ्ज लबों पे आएंगें
दास तब सब खुद कहेँगे हम भी कादिर हो गए हैं II