आधुनिकता की आड़ में
अंधाधुन दौड़ में
नई नई चीजें इजाद हुई
पुरानी रिवायतें खाक हुई
पहले असबाब अलग हुए
फिर हुआ दिल जुदा
हर चीज का बंटवारा हुआ
हर सामान हुआ अलाहिदा
मेरा फोन, मेरा दीवान
मेरा पहनावा, मेरा खान पान,
घूमने की जगह और दस्तरखान
मेरे ख्याल, मेरा अलग जहान
चीजें बांटते बांटते
धीरे धीरे रूहें भी बंट गई
झिझक और घबराहट में डूबी
जिंदगी एक दूजे से कट गई
सहुलियत देने को ईजाद हुए
अब जान से प्यारे हैं
जानिसार जाने कहाॅ खो गए
दुःख सुख के बाकी यही सहारे है
चित्रा बिष्ट