कापीराइट गजल
जब याद तेरी दिल को आए तो क्या करूं
यह नींद रातों में जब सताए तो क्या करूं
लगता नहीं कहीं दिल अब आप के बिना
जब ये यादें मुझे तेरी सताए तो क्या करूं
रात भर ये चांदनी हम को सोने नहीं देती
ये नींद आंखों से मेरी चुराए तो क्या करूं
दूर रह कर भी तुम, पास रहते हो मेरे
जो याद मुझ को ये तेरी आए तो क्या करूं
दिल मचलता है इन सावन की बारिशों में
यह गीत बूंदें जो इस में गाए तो क्या करूं
रोज चलती है हवा दिन में हल्के हल्के
बन के आंधी जो दिल में आए तो क्या करूं
मौसम है आशिकाना ये दिल है बदगुमां
मुझ को ऐसे में कोई यूं रुलाए तो क्या करूं
ये दिल, है कि अब, मानता नहीं यादव
तू बैठकर मेरे संग जो भुलाए तो क्या करूं
- लेखराम यादव
( मौलिक। रचना )
सर्वाधिकार अधीन है