"ग़ज़ल"
देखा जो हुस्न-ए-यार के जल्वे कमाल के!
रख दिया मैं ने सामने कलेजा निकाल के!!
दिल के रिश्ते बनते हैं बनाए नहीं जाते!
होता नहीं है प्यार कभी देख-भाल के!!
जिस आईने ने देख ली ख़ुद-ग़र्ज़ी की सूरत!
फिर क़ाबिल नहीं रहा वो मेरे इस्ते'माल के!!
हसीं मुस्तक़बिल के सिवा मुझे कुछ नहीं दिखा!
जब भी देखा उस की ऑंखों में ऑंखें डाल के!!
उसे 'परवेज़' मैं ने दिल दिया और कह दिया!
ये दिल हुआ तुम्हारा इसे रखना सॅंभाल के!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad