कौन करेगा मेरी रहबरी जिसे जीवन जीने का सलीका मालूम नही
हलाल वो हराम की तमीज़ में गजायें दूर होता गया बहुत करीब से
सच्चाई पर अटल हूं आज भी _ झूठे लोग साथ छोड़ता गया मेरा
समाज में रहता है वसी मगर कोई मेरे साथ चलने वाला दिखता नहीं
लम्बी दाढ़ी कीमती पोशाक वो फिल्मी स्टाइल से चलते हैं मौलाना
हम जैसे सीधे साधे सच्चे को _ हकीर समझता है बदतमीज़ लोग
उन्हे छमता नहीं की समझ सके _ शरीयत वो तरीकत में रहता है वसी
जिस समाज में हर प्रकार की गजाएं खूब खाए मौलवी और मौलाना
हलाल वो हराम यहां है दफ़न _ फतवा फकत दूसरे केलिए होता है
कोई कुछ भी दे दे हाथ की मुसाफे में मस्जिद के ईमाम को मना नहीं होता
मजबूर, मजलूम और सच्चे को कमतर समझता है इस युग का मौलाना
शिक्षा विनाश है जो बहुत है जहान में _ महान वो जो सच्चा है जहान में
कम खाता हूं कि मौत आ जाए तो पेट में गलीज न जाए मेरे कब्र तक वसी
ला मकां है वसी _मगर बादशाह ए कायनात का भी घर देखा नही है वसी
वसी अहमद क़ादरी! वसी अहमद अंसारी
खुदा का फ़कीर _ समाज का भिखारी नही