जिसके द्वार मैं ले जाना चाहता था बारात,
उसने पूछ लिया आज मुझसे, मेरी औकात।
हर पल सँजोये थे जो मैंने हमारे लिए सपनें,
धरे के धरे रह गए वो सारे के सारे जज़्बात।
रखें हैं मैंने माँगटीका, मंगलसूत्र और पायल,
क्या करूँ अब इनका, कौन लेगा ये सौगात।
भरोसा करने वाले ही होते हैं इश्क़ में पागल,
यकीन न हो तो आकर देख लेना मेरे हालात।
चालाकी से बिछाई तुमने शतरंज की बिसात,
एक ही चाल चल के दे दिया शह और मात।
🖊️सुभाष कुमार यादव