"ग़ज़ल"
इन अदाओं को कुछ और क़ातिलाना बना दे!
धड़कते हुए हर दिल को तू दीवाना बना दे!!
ऐ शम्अ-ए-फ़रोज़ाॅं! तू अपना जल्वा दिखा दे!
महफ़िल की हर एक शय को तू परवाना बना दे!!
तेरी ऑंखों में पोशीदा हैं हज़ारों मय-कदे!
अब इन फूल-से होंटों को तू पैमाना बना दे!!
इन ज़ुल्फ़ों को लहराने दे बदल जाने दे रुत को!
नागवार-से मौसम को आशिक़ाना बना दे!!
जन्नत का बाग़ हो जहाॅं फ़रिश्तों का हो गुज़र!
उस बाग़ में मौला मेरा आशियाना बना दे!!
ख़ुदा हर जगह मौजूद है फिर दैर-ओ-हरम क्यूॅं?
इन्हें कर के मिस्मार ग़रीब-ख़ाना बना दे!!
जो आलम से जुड़े 'परवेज़' वो इश्क़ क्या करे!
कमाल-ए-इश्क़ दुनिया से बेगाना बना दे!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad